


26/11 की घटना के बाद दुनिया में यह माहौल बना था कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका सबसे आगे रहेगा। लेकिन, पिछले कुछ समय में ऐसी कई चीजें देखने को मिली हैं, जिससे साफ हो चुका है कि दुनिया का सुपरपावर समझने वाला अमेरिका आतंकवाद के मामले में भी निहित स्वार्थ में डूबा हुआ है। उसे सिर्फ उन आतंकियों से दुश्मनी है, जिससे उसके अपने हित प्रभावित हो रहे हैं। बाकी आतंकवाद को राष्ट्रीय नीति के तौर पर चलाने वाला पाकिस्तान जैसा देश ही क्यों न हो, अमेरिका उनके साथ खड़ा रहेगा। ऐसे में पहलगाम हमले के बाद दुनिया भर में आतंकवाद के खिलाफ अभियान चलाने वाले भारत की लड़ाई को नए सिरे से लड़ने की जरूरत आ खड़ी हुई है।
आतंकवाद पर पाकिस्तान अमेरिका का 'वैल्यूएबल पार्टनर'
आतंकवाद के मसले पर अमेरिका की दोहरी नीति की सबसे बड़ी पोल उसके सेंट्रल कमांड के चीफ जनरल माइकल कुरिला के एक बयान से खुली है। उन्होंने आतंकवाद से लड़ने में पाकिस्तान को एक 'वैल्यूएबल पार्टनर' बताया है। यहां तक कि उन्होंने आतंकी संगठनों से निपटने के लिए पाकिस्तान के साथ सहयोग बढ़ाने की बात कही है। अमेरिकी सीनेट कमेटी के सामने जनरल कुरिला ने कहा कि आईएसआईएस-के (ISIS-K) पाकिस्तान-अफगानिस्तान बॉर्डर के आदिवासी इलाकों में एक्टिव है। ऐसे में उसके लिए पाकिस्तान की भूमिका और भी अहम हो जाएगी।
आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका से उम्मीद बेमानी
अमेरिका के एक बड़े अधिकारी ऐसे समय में पाकिस्तान के साथ आतंकवाद पर अपनी तालमेल का महिमामंडन कर रहे हैं, जब पहलगाम आतंकी हमले में जनरल असीम मुनीर की भूमिका का पर्दाफाश हो चुका है। पाकिस्तानी सेना के इसी चीफ के भड़काऊ बयान के हफ्ते भर बाद ही पहलगाम की बैसरन घाटी को पाकिस्तानी आतंकियों ने 25 भारतीय और एक विदेशी नागरिक का धर्म पूछकर उनके खून से लाल कर दिया। मतलब, माइकल कुरिला ने जो कुछ कहा है और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जो रवैया दिखाया है, उससे कम से कम आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका से कोई उम्मीद करना बेमानी है।